What is the Term Insurance in Hindi - बीमा क्या है इन हिंदी , बीमा कितने प्रकार के होते हैं

आज संसार का प्रत्येक व्यक्ति अनिश्चतताओं एवं जोखिमों से घिरा हुआ है। जो कुछ उसके पास है उसे खोने का डर उसे हमेशा सताता रहता है। चाहे वह संसार का सबसे धनी व्यक्ति हो या एक सामान्य आदमी चाहे वह एक बड़े उद्योग का • मालिक हो या एक छोटा या दुकानदार, राजनेता हो या अभिनेता, खिलाड़ी हो या खेल का आयोजक, किसान-मजदूर हो या वैज्ञानिक सभी अपने भविष्य के खतरों से भयभीत रहते हैं। 


किसी को अपने स्वास्थ्य की चिन्ता है तो किसी को अपनी मृत्यु के पश्चात् परिवाजनों की किसी को प्राकृतिक विपदाओं जैसे बाद, तूफान, उपद्रव, भूकम्प से सम्पत्ति के नष्ट होने की चिन्ता है तो किसी को अपने व्यवसाय के माल को सुरक्षित रखने की एक कर्मचारी को अपनी नौकरी की चिन्ता है तो मालिक को कर्मचारी द्वारा विश्वासघात करने का डर सताना है। व्यवसायी को प्रतिस्पर्धी की चिन्ता है तो उपभोक्ता को चिन्ता है कि कहीं उसे मिलावटी या नकली माल तो नहीं दिया जा रहा साझेदारों को अन्य साझेदारों द्वारा पैसा हड़पने की चिन्ता रहती है तो कारखाने के मालिक को कानूनी पंजों की जोरदार पकड़ होने से अपने कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों एवं श्रमिकों के जीवन की सुरक्षा के उपाय करने की चिन्ता रहती है तात्पर्य यह है कि आधुनिक तकनीकी युग में हम सभी का सम्पूर्ण जीवन एवं चारों ओर का वातावरण भय एवं चिन्ताओं से ग्रस्त है। यही चिन्ताएँ व्यक्ति को जोखिम ग्रस्त करती है और जीवन में अनिश्चतता नी उत्पन्न करती है इसलिए फ्रँक एच नाईट द्वारा दशकों पूर्व व्यक्त किये गए विचार आज भी सत्य सिद्ध हो रहे है कि जोखिम अनिश्चतता का ही नाम है और अनिश्चितता जीवन की आधारभूत वास्तविकताओं में से एक है।"


मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपनी सुरक्षा चाहता है। अपने को सुरक्षित रखने के लिये मनुष्य ने आदिम युग से वर्तमान तक अनेक उपाय किये है, उन्हीं उपायों में से एक है - बीमा। बीमा उतना ही पुराना है जितनी सभ्यता प्राचीन समय में इसका में स्वरूप आपसी सहायता और सहयोग के रूप में था। वर्तमान में बीमा का कार्य कम्पनियों और निगमों द्वारा सम्पादित किया जाता है। ऋग्वेद में बीमे के लिये "योगक्षेम" शब्द का प्रयोग किया गया है। मनुस्मृति में भी "वस्तु के क्रयमूल्य, विक्रयमूल्य, मात्रा की दूरी, सम्बन्धित व्यय और योगक्षेम, अर्थात् जोखिम तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये व्यापारियों से कर वसूल किया जाने का उल्लेख आया है। प्रारम्भ में बीमा की जरूरत व्यक्तियों और माल की जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये हुई किन्तु वर्तमान में बीमा सुरक्षा के साथ-साथ विनियोग एवं उत्पादन में वृद्धि के अवसर भी उपलब्ध करा रहा है।

बीमा के कारण ही हमारे लिये अनिश्चतताओं एवं जोखिमों से उबरना सम्भव हो पाता है। इसलिये बीमा एक व्यक्ति, समाज, व्यवसाय और राष्ट्र सभी के लिये आवश्यक आवश्यकता बनता जा रहा है। इसके बिना जोखिम एवं अनिश्चतताओं से भरे संसार में चलना कठिन है। अमेरिकी विहान कालविन कूलिज लिखते है बीमा वह आधुनिक साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अनिश्चित को निश्चित तथा असमान को समान बना सकता है। यह वह साधन है जिसके द्वारा सफलता को लगभग निश्चित किया जा सकता है। इसके माध्यम से ताकतवर कमजोर की सहायता के लिये अंशदान देता है तथा कमजोर ताकतवर से सहायता प्राप्त करता है किन्तु किसी की कृपा से नहीं अपितु अधिकार द्वारा जो कि उसने भुगतान करके खरीदा है। बीमा मनुष्य धर्म के सुनहरे नियम के अनुसार कार्य करता है - "एक दूसरे का कष्ट मिलजुलकर सहन करो"



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बीमा : अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning & Definitions of Insurance)


अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से बीमा को परिभाषित किया है। जन सामान्य एवं समाजशास्त्रियों के दृष्टिकोण से बीता "जोखिम से सुरक्षा का उपाय" (A device of protection against risks) माना गया है। अर्थशास्त्रियों ने "बीमा के अर्थशास्त्र को ध्यान में रखकर आर्थिक या व्यवसायिक आधार पर बीमा की परिभाषा की है। कानूनी दृष्टिकोण रखने वालों ने बीमा को एक अनुबन्ध (Contract) बताया है। इस प्रकार विद्वानों ने बीमा की उपयोगिता आधारित, प्रक्रिया आधारित एवं वैधानिक परिभाषाएँ की है। इन सभी को अध्ययन की सुविधा के लिये निम्नलिखित तीन भागों में बाटों गया है:



  • (1) सामान्य परिभाषाएँ
  • (2) कार्यात्मक परिभाषाएँ
  • (3) अनुबन्धात्मक / वैधानिक परिभाषाएँ
 
 

(1) सामान्य परिभाषाएँ (General Definitions )


सर विलियम बेवरिज के अनुसार, "सामूहिक रूप से जोखिमें उठाना ही बीमा है।" इस परिभाषा के अनुसार किसी एक की जोखिम को जिसे वह अकेला वहन नहीं कर सकता, मिलजुलकर उठाना ही बीमा का कार्य है।

जान मैगी के अनुसार बीमा वह योजना है जिसके अन्तर्गत एक बड़ी संख्या में लोग मिलकर किन्हीं एकाकी व्यक्तियों की जोखिमों को अपने कन्धों पर ले लेते हैं।

थामस के अनुसार "बीमा एक प्रावधान है जो एक विवेकशील व्यक्ति आकस्मिक अथवा अवश्यम्भावी घटनाओं, हानियों या दुर्भाग्य के विरूद्ध करता है। यह जोखिमों को बाँटने या फैलाने का तरीका है।

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बीमा जोखिमों को फैलाने का सामाजिक व सहकारी तरीका है, जिसमें समान, जोखिमों से घिरे व्यक्ति अपनी जोखिमों को दूसरे व्यक्ति या किसी संस्था (बीमाकर्ता) को हस्तान्तरित कर देते हैं अथवा सब मिलकर सामूहिक रूप से बाँट लेते है।
 
 
 

(2) कार्यात्मक / व्यावसायिक परिभाषाएं


कुछ विद्वानों ने बीमा की कार्यात्मक परिभाषाएँ देते हुये बीमा की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है कि किस प्रकार बीमा द्वारा हानि से सुरक्षा अथवा हानि की पूर्ति की जाती है। इन परिभाषाओं के अनुसार बीमा बीमित को हानि से सुरक्षित करने तथा क्षतिपूर्ति करने की प्रक्रिया है।

ब्रिटानिका विश्वकोष के अनुसार "बीमा एक सामाजिक तरीका है जिसके द्वारा व्यक्तियों का एक बड़ा समूह समान अंशदान की व्यवस्था द्वारा समूह के सभी सदस्यों की कुछ सामान्य मापने योग्य आर्थिक हानि को कम या दूर करता है।

रागल तथा मिलर के अनुसार "बीमा यह सामाजिक उपाय या योजना है जिसके द्वारा एकाकी व्यक्तियों की अनिश्चित जोखिमों को समूह के साथ जोड़ा जा सकता है तथा उन जोखिमों को अधिक निश्चित किया जा सकता है। सभी व्यक्तियों द्वारा समय-समय पर दिये गये अल्प अंशदान से निर्मित कोष में से हानि की पूर्ति की जा सकती है।

फेडरेशन ऑफ इन्श्योरेन्स इन्स्टीट्यूट्स, मुम्बई के अनुसार "बीमा वह विधि है जिसमें एक समान प्रकार की जोखिम से घिरे व्यक्ति एक सामान्य कोष में से अंशदान करते है जिनमें से कुछ दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों की दुर्घटनाओं में हुई हानियों को पूरा किया जाता है।

इन सभी क्रियात्मक परिभाषाओं से स्पष्ट है कि बीमा

एक सामाजिक उपाय है जिसके अन्तर्गत बड़ी संख्या में लोग एक संगठन के अन्तर्गत कुछ जोखिमों से सुरक्षा पाने के लिये अंशदान (प्रीमियम) देकर कोष का निर्माण करते हैं तथा उस कोष में से सदस्यों की जोखिम से होने वाली मापने योग्य आर्थिक हानि की क्षतिपूर्ति की जानी है।
 
 
 

(3) अनुबंधात्मक / वैधानिक परिभाषाएँ।


ये परिभाषाएँ बीमा के वैधानिक स्वरूप को स्पष्ट करती

न्यायमूर्ति टिण्डाल के अनुसार, "बीमा एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमित बीमाकर्ता को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित घटना के घटित होने की जोखिम उठाने के प्रतिफल में देता है।

रीगल तथा मिलर के अनुसार "वैधानिक दृष्टि से यह एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमादाता, बीमित को समझोते के तहत होने वाली वित्तीय हानि को पूरा करने का ठहराव करता है और बीमित इसके लिये प्रतिफल (प्रीमियम) चुकाने को सहमत होता है।

पेटरसन के अनुसार "बीमा एक अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत एक पक्षकार प्रतिफल जिसे प्रीमियम कहते हैं, के बदले किसी दूसरे पक्षकार की जोखिम को ले लेता है तथा किसी विशिष्ट घटना के घटित होने पर उसे या उसके नामांकित व्यक्ति को एक निश्चित या निश्चित की जाने वाली धनराशि के भुगतान का वचन देता है।

बीमा की वैधानिक परिभाषाऐं स्पष्ट करती है कि बीमा दो पक्षकारों (बीमित और बीमाकर्ता) के बीच एक अनुबन्ध है जिसमें बीमाकर्ता एक निश्चित प्रतिफल ( प्रीमियम) के बदले बीमित को किन्हीं पूर्व निश्चित कारणों से हानि होने पर क्षतिपूर्ति करने अथवा किन्हीं निश्चित घटनाओं के घटित होने पर एक निश्चित अथवा निश्चित की जाने वाली धनराशि के भुगतान करने का वचन देता है। निष्कर्ष बीमा की अलग-अलग विद्वानों द्वारा

अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत परिभाषाओं का अध्ययन करने पर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि बीमा एक सामाजिक एवं सहकारी व्यवस्था है, सामूहिक रूप से जोखिमों को वहन की विधि है जिसमें समान प्रकार की जोखिमों से घिरे व्यक्ति बीमाकर्ता को कुछ अंशदान (प्रीमियम) देकर एक कोष का निर्माण कर लेते है तथा बीमाकर्ता इस कोष से बीमित को बीमापत्र में उल्लेखित घटना के घटित होने पर घटना से हुयी वास्तविक हानि की राशि अथवा पूर्वनिर्धारित धनराशि चुका है।






बीमा की विशेषताऐं या प्रकृति (Characteristics or Nature of Insurance) :

बीमा के लाभ


1. जोखिमों से सुरक्षा :-  बीमा आर्थिक सुरक्षा का कवच है। यह जीवन का माल  या सम्पत्ति के सम्बन्ध में व्याप्त जोखिमों को समाप्त नहीं करता बल्कि जोखिमों से सुरक्षित करने का तरीका है।

2. जोखिमों का विभाजन: बीमा, किसी व्यक्ति परिवार या संस्था को किसी निश्चित घटना के घटित होने पर होने वाली आर्थिक हानि को सभी बीमित व्यक्तियों में विभाजित करने की युक्ति है। ये घटनाएँ परिवार के सदस्य की मृत्यु, सामुद्रिक दुर्घटनाएँ, चोरी, दुर्घटना, प्राकृतिक प्रकोप आदि किसी भी रूप में हो सकती है।

3. सहकारी व्यवस्था:  प्रो. आर. एस. शर्मा के अनुसार बीमा एक सहकारी व्यवस्था है।" बीमा का आधार सहकारिता का सिद्धान्त है अर्थात् "एक सबके लिये और सब एक के लिए बीमा के अन्तर्गत सामूहिक हित के लिए कुछ लोग स्वेच्छा से अंशदान देकर एक कोष का निर्माण किया जाता है तथा किसी भी सदस्य को हानि होने पर कोष में से क्षतिपूर्ति की जाती है।

4. विस्तृत क्षेत्र: बीमा का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें जीवन बीमा अग्नि बीमा, सामुदिक बीमा के अलावा अनेक आधुनिक या गैर पारम्परिक बीमा भी सम्मिलित है। इन गैर पारम्परिक बीमा में हम कृषि बीमा, पशुधन बीमा, झोपड़ी बीमा, चिकित्सा बीमा, वाहन बीमा विश्वसनीयता बीमा आदि को सम्मिलित करते है।

5. शुद्ध जोखिमों का बीमा:  जोखिमें दो प्रकार की होती है प्रथम शुद्ध जोखिमें तथा द्वितीय परिकल्पी जोखिमें शुद्ध जोखिमें वे है जिनमें केवल हानि की ही सम्भावना होती है। परिकल्पी अथवा सट्टे की जोखिमें, वे होती है जिनमें हानि एवं लाभ दोनों की ही सम्भावनाऐं बनी रहती है। बीमा केवल भावी शुद्ध हानियों से सुरक्षा का साधन है। अतः केवल शुद्ध जोखिमों का ही बीमा करवाया जा सकता है।

6. लोकनीति या लोकहित के विरुद्ध नहीं: बीमा उन कार्यों के लिये नहीं करवाया जा सकता जो लोकहित के विरुद्ध है। उदाहरण के लिये चोर डकैत या जेबकतरे आदि अपने लूट के माल का बीमा नहीं करवा सकते. क्योंकि ये कार्य लोक-हित के विरूद्ध होते है।

7. कानून द्वारा नियमन: वर्तमान में प्रत्येक देश में बीमा कार्य का देश की सरकार के द्वारा नियंत्रण किया जाता है। प्रत्येक देश की सरकार बीमा व्यवस्था के संचालन हेतु कानून बनाती है हमारे देश में जीवन बीमा अधिनियम, समुद्री बीमा अधिनियम, साधारण बीमा (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम तथा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) आदि के द्वारा बीना का नियमन एवं नियन्त्रण किया जाता है।

8. जोखिमों का मूल्यांकन:  बीमा करने से पहले बीमाकर्ता द्वारा जोखिम की सम्भावना और जोखिम की राशि दोनों को पहले निर्धारित कर लिया जाता है। उसके आधार पर ही बीमित से प्रीमियम लिया जाता है। जितनी अधिक जोखिम उतना अधिक प्रीमियम

9. बीमा जुआ नही: बीमा जुआ नहीं है। जुए में एक पक्षकार को हानि होती है और दूसरे को लाभ जबकि बीमा में ऐसा नहीं है। बीमा हानि से बचने के लिये करवाया जाता है जबकि जुआ को मनोरंजन या लाभ प्राप्त करने के लिये खेला जाता है। बीमा एक वैध अनुबंध है जबकि जुए को अनुबन्ध अधिनियम में व्यर्थ घोषित किया गया है। बीमा जनहित के लिये किया जाता है जबकि जुए में जनहित नहीं होता बीमा में भाग्य का महत्व नहीं जबकि जुए में भाग्य का बहुत महत्व होता है।

10. बीमा दान नहीं: बीमा दान भी नहीं है, क्योंकि दान बिना किसी वास्तविक प्रतिफल के लिए ही दिया जाता है। जबकि बीमा में वैध और वास्तविक प्रतिफल होता है। बीमाकर्ता बीमित से एक निश्चत प्रतिफल ( प्रीमियम) लेता है जबकि दान लेने वाले को कुछ देना नहीं पड़ता। बीमा एक व्यापार है। दानकर्ता को दान के बदले कुछ आर्थिक लाभ नहीं मिलता।

अन्य विशेषताएँ:

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  • (i) बीमा कुछ सिद्धान्तों पर आधारित है। 
  • (ii) बीमा एक संस्थागत ढाँचा बन गया है।

बीमा सम्बन्धी महत्वपूर्ण शब्दावली


बीमा के दौरान कुछ शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें समझना आवश्यक है---

(1) बीमाकर्ता - वह व्यक्ति या संस्था जो किसी दूसरे व्यक्ति को जोखिमों से होने वाली हानि की पूर्ति का वचन देती है। बीमित या बीमाकृत या बीमादार -

(2) बीमा अनुबन्ध का दूसरा पक्षकार जो बीमा की विषयवस्तु का स्वामी होता है या जिसका बीमा की विषयवस्तु में हित होता है। बीमित कोई व्यक्ति, फर्म या संस्था अथवा कम्पनी के रूप में हो सकता है। यह बीमाकर्ता को प्रीमियम का भुगतान करता है।

(3) प्रीमियम - यह बीमा अनुबन्ध का प्रतिफल या मूल्य है जो बीमाकर्ता  बीमित से प्राप्त करता है।

(4) बीमा की विषयवस्तु - जिस जीवन या सम्पति का बीमा किया जाता है वह बीमा की विषयवस्तु कहलाती है। अल्प बीमा

(5) जब किसी सम्पति का बीमा उसके मूल्य से कम धनराशि का कराया जाता है तो उसे अल्प बीमा कहते है। 
 
(6) अधिबीमा - जब किसी सम्पति का बीमा उसके मूल्य से अधिक धनराशि का काराया जाता है तो उसे अधिबीमा कहते है।
 
 (7) पुनर्बीमा - जब कोई बीमाकर्ता अपनी जोखिम को कम करने के लिये किसी दूसरे बीमाकर्ता से अपने द्वारा बीमाकृत जोखिम का पुनःबीमा करवा लेता है तो उसे पुर्नबीमा कहते है।

(8) दोहरा बीमा- जब कोई बीमित एक ही विषयवस्तु पर एक से अधिक बीमाकर्ताओं से अधिक बीमापत्र क्रय करता है तो उसे दोहरा बीमा कहते है।

(9) बीमापत्र - बीमापत्र वह लिखित प्रलेख है जिसके द्वारा बीमाकर्ता एवं बीमित के बीच बीमा अनुबन्ध किया जाता है।

(10) कालानीत बीमापत्र कालातीत बीमापत्र वह है जिसकी देय प्रीमियम का भगतान यथासमय नहीं होने के कारण बीमित के लाभ प्राप्त करने का अधिकार समाप्त हो जाता है।

(11) एश्योरेन्स - इस शब्द का प्रयोग उन बीमा अनुबन्धों के लिये किया जाता है जिसमें बीमाकर्ता का दायित्व निश्चित रहता है, जीवन बीमा अनुबंधों के लिये एश्योरेन्स शब्द का प्रयोग किया जाता है।
 
(12) इन्श्योरेन्स - इस शब्द का प्रयोग उन अनुबंधों के लिये किया जाता है जिसमें हानि होने की सम्भावना तो पायी जाती है किन्तु हानि होना निश्चित नहीं होता। क्षतिपूर्ति अनुबन्धों (अग्नि, समुद्री बीमा) में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।

(13) जोखिम किसी अनिष्ट क्षति विनाश हानि या दुर्घटना, सम्भावना या अनिश्चितता को ही जोखिम कहते है। 
 
(14) बीमा संकट (Hazard) - वे कारण जो किसी विशेष स्थिति में विषयवस्तु की हानि उत्पन्न करते हैं या हानि की सम्भावना को बढ़ाते है।
 
 
 

बीमा कितने प्रकार के होते हैं - what are the types of insurance

बीमा का क्षेत्र एवं प्रकार Scope and Kinds of Insurance


ऐसा माना जाता है कि बीमा का आधुनिक स्वरूप जो हमे देखने को मिल रहा है इसका प्रारम्भ 13वीं शताब्दी में हुआ है। बीमा की उत्पत्ति एवं विकास पर नजर डाले तो सर्वप्रथम सामुद्रिक बीमा का वर्णन मिलता है। इसके बाद धीरे-धीरे अग्नि बीमा, जीवन बीमा तथा अन्य बीमों का प्रचलन हुआ है। वर्तमान में अनेक प्रकार के बीमे प्रचलित है यानि आवश्यकता एवं जोखिमों की विविधताओं के अनुसार अलग-अलग प्रकार के बीमें, बीमाकर्ताओं द्वारा किये जाते है वर्तमान युग में बीमा का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है। अध्ययन की सुविधा के लिये हम निम्नलिखित प्रमुख आधारों पर बीमा का वर्गीकरण कर सकते हैं

(1) बीमा की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण

(2) व्यावसायिक आधार पर वर्गीकरण 
 
(3) जोखिम के आधार पर वर्गीकरण

बीमा भी प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण


बीमा की प्रकृति के आधार पर बीमा को निम्नलिखित

पाँच वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  • 1. जीवन बीमा
  • 2. अग्नि बीमा 
  • 3. समुद्री बीमा
  • 4. सामाजिक बीमा तथा
  • 5. विविध बीमा


1. जीवन बीमा (Life Insurance) -  जीवन बीमा क्या है

जीवन बीमा के अन्तर्गत व्यक्तियों के जीवन का बीमा किया जाता है। इसमें बीमे की विषयवस्तु मानव जीवन होता है। जीवन बीमा में बीमाकर्ता एक निश्चित प्रतिफल (प्रीमियम) के बदले बीमित को उसकी मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को अथवा निश्चित अवधि पूर्ण होने पर बीमित को एक निश्चित धनराशि देने का वचन देता है। बीमित को एक निश्चित समयावधि तक प्रीमियम की राशि चुकानी होती है। यदि बीमित निश्चित प्रीमियम अवधि के पूर्व ही मर जाता है तो उसके उत्तराधिकारी को आगे प्रीमियम नहीं देनी पड़ती है, बीमित की मृत्यु की दशा में उनके नामांकित अथवा उत्तराधिकारी को ही बीमे की राशि प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है।

जीवन बीमा बीमित एवं उसके परिवार के सदस्यों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी भी व्यक्ति का, जिसके जीवन में उसका बीमायोग्य हित है, बीमा करवा सकता है। जीवन बीमा में सुरक्षा के साथ-साथ विनियोग तत्व में भी होता है। हमारे देश में जीवन बीमा व्यवसाय "भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के साथ-साथ कुछ निजी कम्पनियों जैसे कोटक महिन्द्रा बजाज एलियाज और आईसीआईसीआई प्रुडेशियल द्वारा भी किया जाता है।



2.  अग्नि बीमा (Fire Insurance) -


अग्नि बीमा वह बीमा है जिसमें बीमाकर्ता बीमित को आग लगने से सम्पति को होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति का वचन देता है। यह क्षतिपूर्ति का बीमा होता है जिसमें बीमाकर्ता द्वारा केवल वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति की जाती है। अग्निबीमा सामान्यतः एक वर्ष की अवधि के लिये ही करवाया जा सकता है। यह बीमा आग से होने वाले नुकसान के अतिरिक्त कुछ निश्चित परिणामजन्य हानियों की क्षतिपूर्ति के लिये भी किया जाता है। यह बीमा दंगो, बलवो, उपद्रवों, गैस विस्फोट, भूकम्प, आँधी, बाढ़, जल-प्लावन, वायुयान क्षति, बिजली गिरने आदि जोखिमों से सम्पति की सुरक्षा के लिये भी कराया जा सकता है।

आधुनिक औद्योगिक युग में अग्नि बीमा का महत्व बहुत अधिक है। कारखानों, गोदामों, दुकानों, आवासीय बस्तियों में अग्नि का खतरा बढ़ रहा है अत्यधिक विद्युत उपयोग या विद्युतयुक्त निर्माण प्रक्रिया में भी सभी जगह अग्नि से हानि की जोखिम बढ़ी है।


3. समुद्री बीमा (Marine Insurance )


"समुद्री बीमा विभिन्न सामुद्रिक जोखिमों से जहाज, माल एवं भाड़े की रकम के सम्बन्ध में होने वाली क्षतिपूर्ति का बीमा है। समुद्री बीमा जहाज, जहाज में ढोये जाने वाले माल, जहाज के भाड़े आदि का करवाया जा सकता है। समुद्री तूफान आने जहाज के दूसरे जहाज या चट्टान से टकरा जाने पर होने वाली क्षति के लिये सामुद्रिक बीमा करवाया जाता है।

समुद्री बीमा में दो प्रकार के बीमों को सम्मिलित किया जाता है प्रथम, महासागर सामुद्रिक बीमा एवं द्वितीय अन्तरस्थलीय अर्थात् देशीय सामुद्रिक बीमा प्रथम बीमा सामुद्रिक जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि द्वितीय प्रकार के समुद्री बीमे में उन अन्तस्थलीय जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की जानी है जो बीमित तथा क्रेता (आयातक) के गोदाम तक माल की सुपुर्दगी लेन-देन के दौरान उत्पन्न होती है।


4. सामाजिक बीमा (Social Insurance) : 

 
समाज के निम्न एवं बेसहारा वर्ग को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये सामाजिक बीमा योजनाओं का विकास किया गया है। वर्तमान में सरकार जनकल्याण की भावना एवं कमजोर वर्गों के उत्थान हेतु सामाजिक बीमा योजनाऐं प्रारम्भ करती है। इस बीमा के अन्तर्गत बेरोजगारी, बीमारी, आकस्मिक, दुर्घटनाओं, वृद्धावस्था प्रसूति, मृत्यु आदि अनेक जोखिमों का बीमा किया जाता है। राष्ट्रीय श्रम आयोग ने सामाजिक बीमा को परिभाषित करते हुये लिखा है कि "सामाजिक बीमा वह योजना है जो अल्प आय वर्ग के लोगों को अधिकार पूर्वक वह राशि लाभ के रूप में प्रदान करती है जो बीमित, सेवायोजक तथा सरकार के अंशदान से एकत्रित होती है।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक बीमा एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा बीमित की बेरोजगारी बीमारी या आकस्मिक दुर्घटनाओं के समय जीवन स्तर को बनाये रखने के उद्देश्य सेएक सामान्य कोष में से सुविधाएं प्रदान की जाती है। इस कोष का निर्माण श्रमिकों सरकार एवं सेवाजको के त्रिदलीय अंशदान से किया जाना है।

सामाजिक बीमा के मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार है

1. बीमारी बीमा- इसमें बीमित व्यक्ति के बीमार पड़ जाने पर दवाइयाँ चिकित्सा सुविधा तथा बीमारी की अवधि में वेतन की क्षति की पूर्ति व्यवस्था की जाती है। सामान्य बीमा निगम द्वारा इस हेतु मेडीक्लेम की योजना चलायी गई है।

2. मृत्यु बीमा - इसमें बीमित की कार्य के दौरान मृत्यु हो जाने पर उसके आश्रितों को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से एक धनराशि प्रदान की जाती है। इस प्रकार नियोक्ता अपने कर्मचारियों का मृत्यु बीमा करवाकर अपने दायित्वों का हस्तान्तरण बीमाकर्ता को करता है।

3. असमर्थता बीमा - इसमें कारखाने में दुर्घटना के किसी कर्मचारी के कार्य करने में पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से अपंग हो जाने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान होता है यद्यपि 'श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अनुसार यह दायित्व सेवायोजकों का होता है किन्तु नियोक्ता इस प्रकार का बीमा करवाकर अपने दायित्व का हस्तान्तरण बीमा कम्पनी को कर सकता है।

4. बेरोजगारी बीमा- जब कुछ विशिष्ट कारणों से बीमित बेरोजगार हो जाता है तो उनके पुनः रोजगार मिलने तक की अवधि के लिये आर्थिक सहायता दी जाती है|


5. वृद्धावस्था बीमा - इस प्रकार के बीमे में बीमाकर्त्ता बीमित या उसके आश्रितों को एक निश्चित आयु के बाद वित्तीय सहायता प्रदान करता है। यह बीमित को वृद्धावस्था में सहायता पहुँचाने की योजना है।

सरकार की सामाजिक न्याय की विचारधारा के प्रचार प्रसार के कारण वर्तमान में हमारे देश में सरकार ने कुलियों, रिक्शाचालको भूमिहीन, मजदूरों, सफाई मजदूरों, कारीगरों, हस्तशिल्पियों आदि समाज के कमजोर वर्गों के लिए विभिन्न बीमा योजनाएँ प्रारम्भ की है जिसमें केवल नाममात्र प्रीमियम देना पड़ता है। कुछ योजनाओं में तो बिना प्रीमियम के भी दुर्घटना लाभ की व्यवस्था की गयी है।

5.विविध बीगे - शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, स्वचालन और तकनीकी विकास के फलस्वरूप जोखिमों के क्षेत्र में वृद्धि हुई है। हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार की जोखिमों का विस्तार हुआ जोखिमों विविधता एवं विस्तार के कारण बीमाकर्ता द्वारा वर्तमान में, आवश्यकता आधारित अनेक बीमा योजनाओं का विकास किया गया है। ऐसे कुछ बीमा अनुबन्धों का आगे वर्णन किया जा रहा है। 
 
(1) वाहन बीमा - सड़क यातायात के अनेक स्वचलित एवं कीमती वाहनों यथा बस, ट्रक, स्कूटर, मोटरसाईकिल कार आदि का बीमा करवाना अनिवार्य है। ऐसे वाहनों का बीमा करवाने से दुर्घटना में वाहन तथा तृतीय पक्षकार को होने वाली क्षति की पूर्ति बीमकर्ता से करवायी जा सकती है। वाहन बीमा की अवधि एक वर्ष होती है। इसमें बीमा कम्पनी तीनों प्रकार की अर्थात् वाहन की क्षति, वाहन स्वामी को हुई क्षति एवं वाहन से तीसरे पक्षकार को होने वाली क्षति का दायित्व ग्रहण किया जाता है।

(2)- व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा - इस बीमे की दशा में दुर्घटना जैसे मृत्यु, स्थायी या आशिक रूप से असमर्थ होने की स्थिति में बीमित को होने वाली सम्भावित हानि की पूर्ति का उत्तरदायित्व बीमाकर्ता द्वारा ग्रहण किया जाता है। दुर्घटना में मृत्यु होने पर अथवा पूर्ण अयोग्यता होने पर बीमा की सम्पूर्ण राशि की क्षतिपूर्ति दी जाती है जबकि आशिक अयोग्यता की दशा में बीमापत्रों की शर्तों के अनुसार एक निश्चित अनुपात में क्षतिपूर्ति की जाती है। साधारण बीमा निगम की चार सहायक कम्पनियों व्यक्तिगत दुर्घटना के सम्बन्ध में जनता दुर्घटना बीमापत्र का निर्गमन करती है। यह वायुउड़ान एवं रोडवेज यात्रा के अन्तर्गत भी प्रचलित है।

(3) चोरी-डकेती बीमा - इस प्रकार के बीमों में बीमाकर्ता बीमित को चीरी, सेंधमारी उठाईगीरी आदि से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का वचन देता है। बीमित अपने मकान, दूकान, माले-गोदाम, यात्रा के दौरान ले जाये जा रहे समान, लाये एवं ले जाये जाने वाले धन आदि का बीमा करवाता है। यह सिनेमाग्रहों, पेट्रोल पम्पों आवासीय होटलों, बैंक, वित्तीय संस्थाओं आदि के लिये उपयोगी होता है।

(4) पशुधन बीमा - पशुधन बीमा का बीमा इस प्रकार के बीमा में यदि पशुओं में महामारी बीमारी के कारण या अन्य किसी कारण से पशुओं की हानि होती है तो बीमाकर्ता बीमित को क्षतिपूर्ति कर देता है। इसमें गाय, बैल, भैंस, गधे, घोड़े, ऊट, भेड़, बकरी आदि का बीमा सम्मिलित है।


(5) फसल बीमा - कृषि की जोखिमों के कारण कुछ वर्षों से यह बीमा काफी प्रचलित है। इसमें जलवायु सम्बन्धी कारणों यथा सूखा, बाढ, आंधी तूफान, पौधों की बीमारी से महामारी प्रकोप से होने वाली क्षति की बीमित को क्षतिपूर्ति की जाती है।

(6) अपराध बीमा - इसमें डकैती, लूटपाट, उपद्रवों, आंतक कार्यवाहियों आदि से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। बैंक, वित्तीय संस्थाएं, यातायात संस्था, होटल, पेट्रोल पम्प तथा अन्य व्यावसायिक संस्थान इस बीमे के द्वारा सुरक्षित हो सकते है।

(7) अन्य बीमे - उपरोक्त के अतिरिक्त आजकल कई अन्य बीमे भी प्रचलित है उन सबका उल्लेख करना सम्भव नहीं उनमें से कुछ है साईकिल बीमा, बैलगाड़ी बीमा, कुक्कुट बीमा, वायुयात्रा, वन बीमा, सुन्दरता का बीमा उद्यमी का बीमा होटल के ग्राहकों का बीमा, सामान का बीमा आदि।


अन्य बीमे

उपरोक्त के अतिरिक्त आजकल कई अन्य बीमे भी प्रचलित है। उन सबका उल्लेख करना सम्भव नहीं उनमें से कुछ है- साईकिल बीमा, बैलगाड़ी बीमा, कुक्कुट बीमा, वायुयात्रा, वन बीमा, सुन्दरता का बीमा उद्यमी का बीमा होटल के ग्राहको का बीमा सामान का बीमा आदि।
 

(8) प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PSBY)

 
18 से 70 वर्ष की आयु तक का व्यक्ति यह बीमा करवा सकता है। मात्र 12 रु की राशि प्रीमियम के रूप में भुगतान सीधे उस व्यक्ति के बैंक खाते से हो जाता है। यह एक वर्षीय बीमा है। यह माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2015 में प्रारम्भ किया गया है। जहाँ बीमित की मृत्यु पर 2 लाख रूपये और शारीरिक क्षति अथवा हाथ या पैर के काम करने के काम करने में असमर्थ होने पर 1 लाख रूपये का भुगतान बीमित को किया जाना है। इसके लिये बीमित का बैंक खाता होना अनिवार्य है।

 

(9) प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY)

 
यह बीमा भी वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी द्वारा प्रारम्भ किया गया है। 5 वर्ष से 18 वर्ष तक की आयु के सभी व्यक्तियों के लिये है। इसमें बीमित को 2 लाख रु तक की सुरक्षा प्रदान की जाती है। प्रीमियम का भगुतान सीधे बैंक खाते से दिया जाता है। यह बीमा भी एक वर्ष के लिये होता है इसकी • प्रीमियम राशि 380 रु प्रतिवर्ष है।

Arjun Singh

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अर्जुन सिंह है, मैं अभी बी.कॉम से ग्रेजुएशन कर रहा हूं । मुझे लेख लिखना बहुत पसंद है इसलिय में ये ब्लॉग बनाया है, मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद!

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