दोस्तो स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। आज में आपको शिवलिंग के रहस्य और महत्व के बारे में बताऊंगा, दोस्तो आज का यह आर्टिकल भगवान शिव पर आधारित है।
दोस्तो मे आपको बता दू की जो रहस्य और महत्व मै आपको बताऊंगा यह शिव पुराण से लिया गया है। आर्टिकल पूरा पढ़िएगा आपको पूरी जानकारी प्राप्त होगी।
शिवलिंग का रहस्य एवं महत्व
सूत जी कहते हैं- हे शौनक जी! श्रवण, कीर्तन और मनन जैसे साधनों को करना प्रत्येक के लिए सुगम नहीं है। इसके लिए योग्य गुरु और आचार्य चाहिए। गुरुमुख से सुनी गई वाणी मन की शंकाओं को दग्ध करती है। गुरुमुख से सुने शिव तत्व द्वारा शिव के रूप-स्वरूप के दर्शन और गुणानुवाद में रसानुभूति होती है। तभी भक्त कीर्तन कर पाता है। यदि ऐसा कर पाना संभव न हो, तो मोक्षार्थी को चाहिए कि वह भगवान शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना करके रोज उनकी पूजा करे। इसे अपनाकर वह इस संसार सागर से पार हो सकता है। संसार सागर से पार होने के लिए इस तरह की पूजा आसानी से भक्तिपूर्वक की जा सकती है। अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार धनराशि से शिवलिंग या शिवमूर्ति की स्थापना कर भक्तिभाव से उसकी पूजा करनी चाहिए। मंडप, गोपुर, तीर्थ, मठ एवं क्षेत्र की स्थापना कर उत्सव का आयोजन करना चाहिए तथा पुष्प, धूप, वस्त्र, गंध, दीप तथा पुआ और तरह-तरह के भोजन नैवेद्य के रूप में अर्पित करने चाहिए। श्री शिवजी ब्रह्मरूप और निष्कल अर्थात कला रहित भी हैं और कला सहित भी मनुष्य इन दोनों स्वरूपों की पूजा करते हैं। शंकर जी को ही ब्रह्म पदवी भी प्राप्त है। कलापूर्ण भगवान शिव की मूर्ति पूजा भी
मनुष्यों द्वारा की जाती है और वेदों ने भी इस तरह की पूजा की आज्ञा प्रदान की है। सनत्कुमार जी ने पूछा- हे नंदिकेश्वर! पूर्वकाल में उत्पन्न हुए लिंग बेर अर्थात मूर्ति की उत्पत्ति के संबंध में आप हमें विस्तार से बताइए।
नंदिकेश्वर ने बताया- मुनिश्वर ! प्राचीन काल में एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य युद्ध हुआ तो उनके बीच स्तंभ रूप में शिवजी प्रकट हो गए। इस प्रकार उन्होंने पृथ्वीलोक का संरक्षण किया। उसी दिन से महादेव जी का लिंग के साथ-साथ मूर्ति पूजन भी जगत में प्रचलित हो गया। अन्य देवताओं की साकार अर्थात मूर्ति पूजा होने लगी, जो कि अभीष्ट फल प्रदान करने वाली थी। परंतु शिवजी के लिंग और मूर्ति, दोनों रूप ही पूजनीय हैं।